कम्युनिस्ट ताकतें और भारत को तोड़ने का षड़यंत्र यदि आपसे कोई पूछे की देश के लिए सबसे बड़ा खतरा क्या है तो आप क्या कहेंगे ? शायद आप कहेंगे पाकिस्तान, चीन, आतंकवाद या कुछ और पर मेरे अनुसार से यह सही नहीं है | या सब वो ताकते हैं जो हम पर बाहर से हमला करती हैं इसलिए हम इनसे लड़ सकते हैं | लेकिन उनका क्या जो हमें अन्दर से मार रहे हैं, हमें अन्दर से कमजोर कर रहे हैं, जैसे दीमक घर को खोखला करता है, कैंसर शारीर को अन्दर से खाता है और धीरे धीरे मृत्यु तक पंहुचाता है | इसी तरह भारत का भी एक आन्तरिक शत्रु है जो भारत को अन्दर ही अन्दरकमजोर और खोखला कर रहा है | इसकी सबसे बड़ी ताकत है की यह अदृश्य और अप्रत्यक्ष है इसलिए इसके नुकसान हमें सीधे नहीं दीखते समझ आते और यह ताकत है भारत में वामपंथी मार्क्सवादी कम्युनिस्ट | वैसे तो पहले वामपंथ एक वर्ग संघर्ष आन्दोलन था पर बाद में यह सत्ता हथियाने वाली विचारधारा बन गई जो आंदोलनों का उपयोग केवल सत्ता प्राप्त करने के लिए करती है जिसके लिए यह किसी भी सीमा तक जा सकते हैं भले ही देश में गृह युद्ध क्यों न हो जाये, भीषण नरसंहार क्यों न हो जाये | भारत में तो वै
आंबेडकर और बौद्ध धर्म की राजनीती डॉ. भीमराव आंबेडकर एक महान नेता व समाज सुधारक थे, हिन्दू धर्म के शुद्र वर्ण के महार जाति में जन्म लेने के कारण उन्हें और उनके परिवार को सामाजिक अश्पृश्यता और भेदभाव का सामना करना पड़ा | उन्होंने अपनी प्रतिभा से उच्चा शिक्षा और कई डिग्रियां प्राप्त की | उन्होंने भारत में जातिव्यवस्था, वर्णव्यवस्था तथा इसके कारण उत्पन्न हुई सामाजिक अश्पृश्यता व भेदभाव पर विशेष अध्ययन भी किया जिस पर उन्होंने कई लेख व् पुस्तकें भी लिखी | उन्होंने इस भेदभाव को मिटाने के लिए कई आन्दोलन एवं जागरूकता अभियान भी चलाये | उनकी पूरी शिक्षा दीक्षा विदेशों में उई जहाँ उन्होंने विदेशी लेखकों विचारकों की पुस्तकें पढ़ी जिन्होंने सनातन धर्म के वेदों, साहित्यों व् ग्रंथों की व्याख्या अपने विदेशी दृष्टिकोण व् बिना सनातन धर्म को समझे की जिसमें उनका अपने ईसाई धर्म को सनातन धर्म से श्रेष्ठ बताने का उद्देश्य भी था | जातिव्यवस्था, अस्पृश्यता भेदभाव से तंग आकर अम्बेडकर ने १४ अक्टूबर १९५६ को अपने लगभग १,००,००० समर्थकों के साथ जो शुद्र (दलित) वर्ग के थे बौद्ध धर्म अपना लिया | उन्होंने