कम्युनिस्ट ताकतें और भारत को तोड़ने का षड़यंत्र
यदि आपसे कोई पूछे की देश के लिए सबसे बड़ा खतरा क्या है तो आप क्या कहेंगे ?
शायद आप कहेंगे पाकिस्तान, चीन, आतंकवाद या कुछ और पर मेरे अनुसार से यह सही नहीं है | या सब वो ताकते हैं जो हम पर बाहर से हमला करती हैं इसलिए हम इनसे लड़ सकते हैं | लेकिन उनका क्या जो हमें अन्दर से मार रहे हैं, हमें अन्दर से कमजोर कर रहे हैं, जैसे दीमक घर को खोखला करता है, कैंसर शारीर को अन्दर से खाता है और धीरे धीरे मृत्यु तक पंहुचाता है | इसी तरह भारत का भी एक आन्तरिक शत्रु है जो भारत को अन्दर ही अन्दरकमजोर और खोखला कर रहा है | इसकी सबसे बड़ी ताकत है की यह अदृश्य और अप्रत्यक्ष है इसलिए इसके नुकसान हमें सीधे नहीं दीखते समझ आते और यह ताकत है भारत में वामपंथी मार्क्सवादी कम्युनिस्ट |
वैसे तो पहले वामपंथ एक वर्ग संघर्ष आन्दोलन था पर बाद में यह सत्ता हथियाने वाली विचारधारा बन गई जो आंदोलनों का उपयोग केवल सत्ता प्राप्त करने के लिए करती है जिसके लिए यह किसी भी सीमा तक जा सकते हैं भले ही देश में गृह युद्ध क्यों न हो जाये, भीषण नरसंहार क्यों न हो जाये |
भारत में तो वैसे कम्युनिस्टों की नीव 1925 में ही पड़ गई थी पर इनकी देश तोड़ने वाली राजनीती आजादी के आसपास से शुरू हुई जब इन्होने पाकिस्तान की मांग को हवा देने के लिए मुसलमानों को भड़काया | इसके बाद रशिया के प्रभाव में लगातार भारत में नेहरु ने काम किया जो खुद को साम्यवादी कम्युनिस्ट विचारधारा का ही नेता मानते थे, लेकिन भारत में मार्क्सवादी मानसिकता पहली बार इंदिरा गाँधी के कार्यकाल में हावी हुई जब इंदिरा गाँधी के शासन को समर्थन देने के बदले में कम्युनिस्टों को शिक्षा विभाग का एक महत्वपूर्ण विभाग मिला |
उन्होंने शिक्षा विभाग का उपयोग अपनी राजनीती विचारधारा को फ़ैलाने के लिए किया | सभी बड़े शिक्षण और शोध संस्थानों में मार्क्सवादी विचारधारा के लोग बैठ गये और देश की नव चेतना यानि विद्यार्थी वर्ग को निशाना बनाया क्योंकि यही वर्ग भविष्य में उनकी बनाई रणनीति का मोहरा बनने वाले थे | उन्होंने भारत के इतिहास का उपयोग अपनी राजनैतिक उद्देश्य की पूर्ति के लिए किया | शिक्षण संस्थाओं में बैठे मार्क्सवादी इतिहासकार हमेशा से भारत के इतिहास को बुरा, निम्न वर्ग पर अत्याचार करने वाला, ब्राह्मणों द्वारा शोषण करने वाला, वीर राजाओं को डरपोक और मुगलों को महान बताने वाला दिखाते रहे हैं |
शायद आप कहेंगे पाकिस्तान, चीन, आतंकवाद या कुछ और पर मेरे अनुसार से यह सही नहीं है | या सब वो ताकते हैं जो हम पर बाहर से हमला करती हैं इसलिए हम इनसे लड़ सकते हैं | लेकिन उनका क्या जो हमें अन्दर से मार रहे हैं, हमें अन्दर से कमजोर कर रहे हैं, जैसे दीमक घर को खोखला करता है, कैंसर शारीर को अन्दर से खाता है और धीरे धीरे मृत्यु तक पंहुचाता है | इसी तरह भारत का भी एक आन्तरिक शत्रु है जो भारत को अन्दर ही अन्दरकमजोर और खोखला कर रहा है | इसकी सबसे बड़ी ताकत है की यह अदृश्य और अप्रत्यक्ष है इसलिए इसके नुकसान हमें सीधे नहीं दीखते समझ आते और यह ताकत है भारत में वामपंथी मार्क्सवादी कम्युनिस्ट |
वैसे तो पहले वामपंथ एक वर्ग संघर्ष आन्दोलन था पर बाद में यह सत्ता हथियाने वाली विचारधारा बन गई जो आंदोलनों का उपयोग केवल सत्ता प्राप्त करने के लिए करती है जिसके लिए यह किसी भी सीमा तक जा सकते हैं भले ही देश में गृह युद्ध क्यों न हो जाये, भीषण नरसंहार क्यों न हो जाये |
भारत में तो वैसे कम्युनिस्टों की नीव 1925 में ही पड़ गई थी पर इनकी देश तोड़ने वाली राजनीती आजादी के आसपास से शुरू हुई जब इन्होने पाकिस्तान की मांग को हवा देने के लिए मुसलमानों को भड़काया | इसके बाद रशिया के प्रभाव में लगातार भारत में नेहरु ने काम किया जो खुद को साम्यवादी कम्युनिस्ट विचारधारा का ही नेता मानते थे, लेकिन भारत में मार्क्सवादी मानसिकता पहली बार इंदिरा गाँधी के कार्यकाल में हावी हुई जब इंदिरा गाँधी के शासन को समर्थन देने के बदले में कम्युनिस्टों को शिक्षा विभाग का एक महत्वपूर्ण विभाग मिला |
उन्होंने शिक्षा विभाग का उपयोग अपनी राजनीती विचारधारा को फ़ैलाने के लिए किया | सभी बड़े शिक्षण और शोध संस्थानों में मार्क्सवादी विचारधारा के लोग बैठ गये और देश की नव चेतना यानि विद्यार्थी वर्ग को निशाना बनाया क्योंकि यही वर्ग भविष्य में उनकी बनाई रणनीति का मोहरा बनने वाले थे | उन्होंने भारत के इतिहास का उपयोग अपनी राजनैतिक उद्देश्य की पूर्ति के लिए किया | शिक्षण संस्थाओं में बैठे मार्क्सवादी इतिहासकार हमेशा से भारत के इतिहास को बुरा, निम्न वर्ग पर अत्याचार करने वाला, ब्राह्मणों द्वारा शोषण करने वाला, वीर राजाओं को डरपोक और मुगलों को महान बताने वाला दिखाते रहे हैं |
मार्क्सवादी इतिहासकारों ने भारत के इतिहास को इस तरह लिखा है जिससे इन्हें समाज में किसी भारत तरह की अलगाववादी, जातिवादी या क्षेत्रवादी, वर्ग संघर्ष आन्दोलन खड़े करने में मदद हो |
रोमिला थापर, इरफ़ान हबीब, विपिन चन्द्र, रामचंद्र गुहा जसी इतिहासकार की लिखी हुई पुस्तकें और पाठ्यक्रम बच्चों को इतिहास में पढाये जा रहे हैं और उच्च शिक्षा में भी यही पढ़ाया जा रहा है, जिससे उनका ब्रेनवाश होता जा रहा है | उनकी पूरी कोशिश रही की भारत की आने वाली पीढ़ी अपने वास्तविक इतिहास से कटा रहे, उसके लिए उनमें कोई जिज्ञासा, जानकारी या आस्था न रहे न वो कभी अपने गौरवशाली और प्राचीन इतिहास को न जाने और न उसके लिए लड़ें |
मार्क्सवादी इतिहासकारों द्वारा बनाये गए कुछ समाज को तोड़ने वाले सिद्धांत -
आर्य आक्रमण सिद्धांत,
राम मंदिर और मुग़ल इतिहास में छेड़छाड़,
जातिवाद की आग को बढाया,
क्षेत्रीय आंदोलनों को बढ़ाया,
वर्ग संघर्ष को बढ़ाया,
और भी कई सामाजिक और राजनैतिक विद्रोह आन्दोलन खड़े किये जा रहे हैं |
जिन्होंने इतिहास का अध्ययन किया है वो जानते होंगे की पूरी दुनिया में सत्ता पलट हमेशा किसी बड़ी सामाजिक क्रांति के बाद ही होता है,
चाहे वो फ्रांस की क्रांति हो,
रूस की क्रांति हो,
चीन की क्रांति हो,
या भारत का स्वतंत्रता आन्दोलन हो |
हमने स्वतंत्रता के बाद खुद की लोकतान्त्रिक व्यवस्था तो बना ली पर दुनिया भर में फैली मार्क्सवादी-लेनिनवादी विचारधारा वाली कम्युनिस्ट पार्टी की भारतीय इकाई के लिए लिए यह आजादी झूठी है | वो आज भी इस उम्मीद में एक आन्दोलन छेड़े हुए है की किसी दिन भारत में फिर कोई क्रांति होगी और कम्युनिस्टों की सत्ता आयेगी | इसके लिए वे वो किसी भाई तरह की भारत को तोड़ने या यहाँ की मूल जनभावना को कमजोर करने वाली ताकत या विचारधारा का समर्थन कर सकते हैं |
उनकी विचारधारा के लिए भारत सबसे कठिन समाज है क्योंकि भारत की सभ्यता दुनिया के सभी सभ्यताओं से अलग है, यहाँ का समाज और संस्कृति एनी देशों की तुलना में जाता जटिल और एक दुसरे से जुड़ा हुआ है, ऐसे समाज में लोगों को आपस में लड़वाना बहुत कठिन होता है | और जबतक गृहयुद्ध की स्थिति नहीं होगी कम्युनिस्टों की सत्ता नहीं आ सकती | और यह सब तक तक हैं जबतक भारत में बहुसंख्यक हिन्दू हैं क्योंकि हिन्दू संस्कृति समाज के सभी वर्गों, विचारधाराओं और अन्य मतों को आपस में लेकर चलती है जो दुसरे देशों में आसानी से नहीं मिलती, इसलिए वहां किसी को आपसी मतभेद उत्पन्न कर उन्हें लड़वाना आसान होता है | इसलिए यह जरुरी है की भारत में सबसे पहले हिन्दुओं को और भारतीय सामाजिक ताने बाने को कमजोर करो, उनकी आस्था को ख़त्म करो, उनकी अध्यात्मिक केन्द्रों पर हमला करो, उनकी संस्कृति को नष्ट करो उनको जाति, वर्ग, भाषा, क्षेत्र के नाम पर अलग करो |
अयोध्या मुद्दे में घुसना और सबरीमाला की प्रथा नष्ट करने का प्रयास, मनुस्मृति जलाना, ब्राह्मणों को गाली देना ये सब उसी का अंग है |
वो कभी मजदूरों के नाम पर, कभी दलितों के नाम पर, कभी किसानों के नाम पर, कभी आदिवासियों के नाम पर आन्दोलन छेड़ते हैं उन्हें सत्ता और समाज के अन्य वर्गों के विरुद्ध खड़े करते रहते हैं |
इसी अलगाववादी, और देश को तोड़ने वाले आन्दोलन को जिन्दा रखने के लिए उन्होंने भारत के इतिहास को बदला और अपने राजनैतिक उद्देश्य की पूर्ति करने के लिए अपने अनुसार ढाला | इस विकृत इतिहास का उपयोग उन्होंने कुछ निम्न सामाजिक राजनैतिक गतिविधियों में किया -
१.आर्य/ब्राह्मण/सवर्ण v/s द्रविण/दलित/मूलनिवासी/आदिवासी आन्दोलन
२.ईसाई धर्मान्तरण,
३.नक्सल आन्दोलन,
४.नागा और कश्मीरी अलगाववाद,
5.आजादी के समय पाकिस्तान आन्दोलन की हवा देकर,
६.राम मंदिर केस में तीसरा पक्ष बनकर विवाद को बढ़ाकर,
७,नारीवाद के नाम पर महिलाओं को पुरुषों के विरुद्ध खड़े करके,
८.समाज में स्वच्छंदता के नाम पर अश्लीलता और पाश्चात्य संस्कृति का समर्थन,
९.बंगलादेशी और रोहिंग्या घुसपैठ का समर्थन |
मार्क्सवादी संगठनों वर फैलाया गया यह सामाजिक और राजनैतिक षड़यंत्र बहुत कम लोगों को समझ आता है जबकि आम जनता और गरीब इसके शिकार बन कर उनके सिपाही बन जाते हैं, उनके क्रन्तिकारी नारे, शोषण-दमन के खिलाफ लड़ाई की बाते सुनकर उनके प्रति आकर्षित होते हैं | जबकि इन सबके पीछे वामपंथियो का उद्देश्य कभी सकारात्मक या किसी की भलाई करना नहीं बल्कि उनका उपयोग कर देश में गृहयुद्ध छेड़कर सत्ता में आने का है | उन्होंने कई दलित, आदिवासी संगठन खड़े कर लिए हैं जहाँ वो अपने लोगों को चिन्तक बनाकर भेजते हैं, उनका काम सिर्फ उन्ही के द्वारा बनाये गए विकृत इतिहास को बताते हुए लोगों को उकसाना होता है | अब वो देश में एक बड़ा गठजोड़ कर रहे हैं दलित-आदिवासी और मुस्लिम का | यह देश की जनसँख्या का लगभग 40% होगा | यह काम शुरू भी हो चूका है और कुछ राज्यों में इसका असर भी दिखा रहा है और यदि यह पूरे देश में फ़ैल गया तो समाझ लीजिये की देश में अराजकता आने वाली है |
भारत के लोकतंत्र है और यहाँ सत्ता जनता चुनकर देती है, कम्युनिस्टों की विचारधारा राजनैतिक मैदान में हर चुकी है अब उसे केवल सामाजिक मुद्दे पर ही विजय मिल सकती है इसलिए अब वो अपना पूरा जोर देश में लोगों को उकसाने और अलग अलग मुद्दे पर उन्हें आपस में लड़वाने पर लगा रहे हैं | यदि समाज जागरूक नहीं हुआ और उनके इस षड़यंत्र को नहीं समझ पता तो निश्चित ही अगले कुछ वर्षों में कुछ दशकों में भारत गृहयुद्ध देखेगा | ये कभी भी हिन्दुओं के हित पक्ष में खड़े नहीं होंगे, होंगे भी तो दलित को सवर्ण के खिलाफ भड़काने के लिए | कभी ये अवार्ड वापसी गैंग बनकर आ जाते हैं, कभी असहिष्णुता कभी अख़लाक़ के लिए रोते हैं, कभी रोहिंग्या और बांग्लादेशियों के लिए, कभी कठुआ के लिए शोर मचाते हैं कभी वेमुला के लिए |
इस अभियान के दो हिस्से हैं एक है सशत्र दल जो जंगलों में लड़ रहा है, जिसे नक्सलवादी कहते हैं जो आदिवासियों के बच्चों को ले जाकर उन्हें नक्सली आन्दोलन के लिए तैयार करते हैं, ग्रामीणों पर अत्याचार करते हैं, उनके पैसे लुट लेते हैं, सरकारी काम में बाधा कड़ी करते हैं, सड़क, स्कुल अस्पताल उड़ा देते हैं | सैनिको अधिकरियों और पुलिस को मारते हैं और विकास का कोई कार्य उन आदिवासियों गरीबों तक नहीं पहुचंने देते |
और दूसरा वर्ग है शहरी नक्सल, जिसमें नेता, लेखक, साहित्यकार, एक्टिविस्ट, वकील, पत्रकार छात्र और कुछ संघठन है | जिनका काम समाज में माहौल बिगाड़ना, लोगों को अपने विचारधारा के प्रति आकर्षित करना, नक्सलियों के लिए संसाधन जुटाना, सामाजिक और राजनैतिक आन्दोलन खड़े करना और सशत्र सेना को समर्थन देना उनके लिए केस लड़ना, मानवीय भावना पैदा करना आदि है | यह वर्ग अपने विचारधारा और आन्दोलन को एक क्रन्तिकारी आन्दोलन के रूप में प्रस्तुत करते हैं लोगों को उससे जुड़ने के लिए विभिन्य माध्यमों से प्रेरित करते हैं | लोगों में यह झूठी भावना फैलाते हैं की वो जो कर रहे हैं वो गरीबों, दलितों, शोषितों की भलाई के लिए उनके अधिकारों के लिए कर रहे हैं, जबकि वास्तविक उद्देश्य केव और केवल सत्ता पलट कर देश में कम्युनिस्ट शासन लाना है | चीन, पाकिस्तान, और वो अन्य देश जो भारत को पिछड़ा रखना चाहते हैं कमजोर करना चाहते हैं ऐसी विदेशी शक्तियां भी इनके साथ हाथ मिलाकर इनका साथ देती हैं | पर्यावरण संरक्षण के नाम पर आन्दोलन, विकास कार्यों के विरोध में आन्दोलन, सेना की कार्यवाहियों के विरोध में आदोलन करना इसका अंग है |
ये दोनों वर्ग मिलकर एक बहुत ही मजबूत तंत्र बनाते हैं जिसमें फसने वाला व्यक्ति इस धोखे में रहता है की वह कोई सच्ची, गरीबों, दलितों की की लड़ाई लड़ रहा है, न्याय और समानता की लड़ाई लड़ रहा है, लेकिन वह सिर्फ एक बड़े षड़यंत्र का हिस्सा बन जाता है | कुछ को यह पता रहता है पर वो खुद इस आन्दोलन को चलाना चाहते हैं इसलिए वो दूसरों को भी प्रभावित करते हैं | ऐसे लोग हम सबके बीच हो सकते हैं, जाने अनजाने में वो उस विचारधारा से जुड़े होते हैं और उसका प्रसार करते हैं इसलिए यह अभी तक नष्ट नहीं हो रहा है |
इनको नष्ट करने का एक ही उपाय है लोगों को इनके विरुद्ध जागरूक करना और उनसे वैचारिक, राजनैतिक और सामाजिक युद्ध करना | सशस्त्र युद्ध के लिये तो सेना और पुलिस है ही |
अपने आसपास के लोगों को जागरूक करे और ऐसे षड्यंत्रकारियों को पहचाने | देशहित और जनहित में इसे शेयर करें |
धन्यवाद
वंदेमातरम्
वंदेमातरम्
Comments
Post a Comment