आज सनातन दर्शन
सनातन धर्म वैश्विक विचारधाराओं में एक अनमोल विचारधारा है जिसमें कभी किसी एक व्यक्ति, ग्रन्थ या मत का प्रभाव नहीं रहा इस सभ्यता में अनेकों विचारक, महात्माओं व धर्माचार्यों का योगदान रहा जिन्होंने इस सभ्यता को और भी ऊँचे वैचारिक स्थान तक पंहुचाया | यही कारण है की ईसाई और मुस्लिम मत के अत्यधिक प्रचार प्रसार के बाद भी भारत में ये दोनों ही नहीं ठहर पाए, क्योंकि ईसाइयत तथा इस्लाम का दर्शन सनातन दर्शन के आगे कहीं नहीं ठहरता बल्कि कुछ विचारकों के अनुसार तो ईसाईयत व् इस्लाम में कोई दर्शन ही नहीं है वह केवल एक व्यक्ति द्वारा चलाई गई मत परंपरा है जिसका करोड़ो लोग बिना की उद्देश्य व् मार्गदर्शन के पालन, प्रचार व प्रसार करते जा रहे हैं | जबकि सनातन दर्शन में श्रीराम के आदर्श, श्री कृष्ण के योग व् ज्ञान, विदुर, भीष्म की नीतियाँ, शंकराचार्य के उपनिषद, चाणक्य की नीतियाँ, बुद्ध-महावीर का ज्ञान, ऋषि मुनियों की तपस्या, रविदास, कबीर,तुलसीदास, रसखान जैसों के उपदेश, नानक, विवेकानंद, श्रीअरविन्द, परमहंस, दयानंद जैसे महापुरुषों के विचारों का अकूट संग्रह रहा है |
किन्तु इन सबसे अलग जब हम आज की परिस्थित देखते हैं तो हमें लगता है जैसे सभी विचारधाराएँ व् मत संप्रदाय स्वयं को श्रेष्ठ बताने के लिए आपस में लड़ने लगे हैं, सभी ने स्वयं को सनातन धर्म से अलग कर स्वयं का अपन स्वतंत्र मत घोषित करने की होड़ लग चुकी है ताकि वो स्वयं को श्रेष्ठ व् अन्य मतों, विचारधाराओं से अलग व् अधिक प्रभावशाली प्रस्तुत कर सकें जिससे उनके अनुयायी बढ़ें | जबकि आज भी सनातन परंपरा कोई होड़ किये बिना दृणता के साथ चल रहा है | निजी स्वार्थ में कुछ राजनितिक दलों, समूहों व बाह्य विचारधाराओं से प्रभावित संगठनों ने सनातन सभ्यता और उसके दर्शन को निचा दिखाने का प्रयास किया है जिसके कारण अब सनातन दर्शन से लोग धीरे धीरे दूर भी हो रहे हैं आज का संत समुदाय इसके प्रति उदासित लगता है, वो केवल उन्हें ही दीक्षित कर रहे हैं जो पहले से ही इससे प्रभावित में है न की उनको जो भटक गए हैं या विपरीत विचारधारा में चले गए हैं | न वो समाज की कुरीतियों व् भेदभाव को मिटाने का कोई ठोस प्रयास कर रहे हैं न सनातन दर्शन की महान शिक्षाओं को जन जन तक पहुँचाने का प्रयास कर रहे हैं | वो केवल पंडाल लगाकर एक ही प्रकार के प्रवचनों को दोहरा रहे हैं न की समाज को अपने धर्म और दर्शन की रक्षा के लिए प्रेरित कर रहे हैं | अब हमारे सनातन समाज में भी पहले की तरह महान विचारक व् वैचारिक क्रांति लाकर सनातन धर्म को पुनर्स्थापित करने वाले भी नहीं हो रहे, जो हैं भी वे एक सिमित सीमा में ही यह कर पाने में सक्षम हैं | भारत अब एक स्वतंत्र राष्ट्र नहीं रहा जहाँ विचारधारा केवल जीवन को सरल, सुगम व सार्थक बनाने का साधन थी अब भारत की विचारधारा पूर्णतः राजनैतिक हो चुकी है जो किसी न किसी सत्ताधारी व्यक्ति या संगठन से निकलती है, संविधान के लागु होने के कारण अब कई बाह्य शक्तियों को सनातन धर्म को समाप्त करने का अवसर मिल गया है धर्मनिरपेक्षता का सीमा से अधिक दुरुपयोग हो रहा है और वह भी केवल सनातन धर्म के विरुद्ध | साम्यवादी, इस्लामिक व ईसाई संगठन की विचारधारा आपस में मिलकर हमारे सनातन धर्म को मिटाने का हर संभव प्रयास कर रहे हैं | वेदों, शास्त्रों से कुछ तथ्यों का अपने सुविधानुसार अनुवाद व् व्याख्या कर बिना उसके संदर्भ की जानकारी के उसका मिथ्या प्रचार कर ये लोग हिन्दू धर्म के प्रति समाज में रोष व् घृणा भर रहे हैं | इसका मेरे अनुसार कारण यह है यदि किसी धर्म या विचारधारा को नष्ट करना है तो उसके स्त्रोतों को नष्ट या दूषित करना चाहिए न की अनुयायियों परिवर्तित करना चाहिए | यदि समाज का उस विचारधारा या दर्शन पर ही विश्वास नहीं रहेगा तो तो समाज स्वयं ही उससे दूर होकर दुसरे धर्म, मत या दर्शन की और जायेगा |
यदि कोई विचारधारा दुसरे विचारधारा पर सीधे प्रहार करती है तो जिस पर प्रहार हो रहा है उस विचारधारा के अनुयायी आपस में एकजुट हो जाते हैं किन्तु यदि उस विचारधारा का स्त्रोतों को ही दूषित कर दिया जाय तथा अनुयायियों को आपस में ही लड़वा दिया जाय तो संभव है की एक दिन वह विचारधारा धीरे धीरे समाप्त हो जाये | जो की इस समय सनातन धर्म को समाप्त करने के लिए किया जा रहा है चाहे हो शैक्षणिक माध्यमों से हो आंदोलनों के मध्यम से या दुसरे साहित्यिक व् कला आदि के माध्यमों से | अब यदि हमारा समाज धर्म की रक्षा का कार्य केवल साधू संतों व् विचारकों पर छोड़कर अपनी निजी आवश्यकताओं व् स्वार्थों से उठकर अपने धर्म, सिद्धांतों व् दर्शन की रक्षा के लिए खड़ा नहीं होता तो निश्चय ही इस महान विचारधारा का अंत हों जायेगा | अभी समय है की हम अपने लोगों को जागरूक करें व् इस उद्देश्य हेतु जागरूक करें |
धन्यवाद
राहुल शर्मा ( धर्मरक्षार्थ )
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यदि कोई विचारधारा दुसरे विचारधारा पर सीधे प्रहार करती है तो जिस पर प्रहार हो रहा है उस विचारधारा के अनुयायी आपस में एकजुट हो जाते हैं किन्तु यदि उस विचारधारा का स्त्रोतों को ही दूषित कर दिया जाय तथा अनुयायियों को आपस में ही लड़वा दिया जाय तो संभव है की एक दिन वह विचारधारा धीरे धीरे समाप्त हो जाये | जो की इस समय सनातन धर्म को समाप्त करने के लिए किया जा रहा है चाहे हो शैक्षणिक माध्यमों से हो आंदोलनों के मध्यम से या दुसरे साहित्यिक व् कला आदि के माध्यमों से | अब यदि हमारा समाज धर्म की रक्षा का कार्य केवल साधू संतों व् विचारकों पर छोड़कर अपनी निजी आवश्यकताओं व् स्वार्थों से उठकर अपने धर्म, सिद्धांतों व् दर्शन की रक्षा के लिए खड़ा नहीं होता तो निश्चय ही इस महान विचारधारा का अंत हों जायेगा | अभी समय है की हम अपने लोगों को जागरूक करें व् इस उद्देश्य हेतु जागरूक करें |
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