आंबेडकर और बौद्ध धर्म की राजनीती डॉ. भीमराव आंबेडकर एक महान नेता व समाज सुधारक थे, हिन्दू धर्म के शुद्र वर्ण के महार जाति में जन्म लेने के कारण उन्हें और उनके परिवार को सामाजिक अश्पृश्यता और भेदभाव का सामना करना पड़ा | उन्होंने अपनी प्रतिभा से उच्चा शिक्षा और कई डिग्रियां प्राप्त की | उन्होंने भारत में जातिव्यवस्था, वर्णव्यवस्था तथा इसके कारण उत्पन्न हुई सामाजिक अश्पृश्यता व भेदभाव पर विशेष अध्ययन भी किया जिस पर उन्होंने कई लेख व् पुस्तकें भी लिखी | उन्होंने इस भेदभाव को मिटाने के लिए कई आन्दोलन एवं जागरूकता अभियान भी चलाये | उनकी पूरी शिक्षा दीक्षा विदेशों में उई जहाँ उन्होंने विदेशी लेखकों विचारकों की पुस्तकें पढ़ी जिन्होंने सनातन धर्म के वेदों, साहित्यों व् ग्रंथों की व्याख्या अपने विदेशी दृष्टिकोण व् बिना सनातन धर्म को समझे की जिसमें उनका अपने ईसाई धर्म को सनातन धर्म से श्रेष्ठ बताने का उद्देश्य भी था | जातिव्यवस्था, अस्पृश्यता भेदभाव से तंग आकर अम्बेडकर ने १४ अक्टूबर १९५६ को अपने लगभग १,००,००० समर्थकों के साथ जो शुद्र (दलित) वर्ग के थे बौद्ध धर्म अपना लिया | उन्होंने