अभिव्यक्ति की आजादी
"अभिव्यक्ति की आजादी" या "अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता" अर्थात् आपके मन या विवेक में जो भी विचार या विकार उत्पन्न हो रहे हैं उनकी अभिव्यक्ति | वर्तमान परिस्थिति में देखें तो यह वाक्य आज सबसे बड़ा सुरक्षा कवच बन चूका है जिसके पीछे छुपकर आप कुछ भी कर सकते हैं |
उदाहरणार्थ :-
आप अपने ही देश को अपशब्द कह सकते हैं,
किसी धर्म ,पंथ या विचारधारा पर आक्षेप कर सकते हैं,
किसी समाजिक व्यवस्था को तोड़ सकते हैं,
मनोरंजन के नाम पर अश्लीलता दिखाकर धन कम सकते हैं,
किसी के इतिहास को अपने अनुसार बदलकर कुछ भी दिखा सुना सकते हैं
देश और समाज के इतिहास को बदल सकते हैं,
देश के लिए अपने प्राण देने वाले सैनिकों को अपशब्द कह सकते हैं,
देश के बहुसंख्यकों को जिनके कारण ही देश सुरक्षित व धर्मनिरपेक्ष होकर लोकतान्त्रिक रूप से चल रहा है उन्हें आतंकवादी, असहिष्णु, अत्याचारी कह सकते हैं,
देश के जिस चरित्र को बनाने में हजारों वर्ष लगें हो उसे अपने स्वार्थ के लिए छिन्न भिन्न कर सकते हैं,
जिस देश नें विश्व को मर्यादा का पाठ सिखाया उसे एक नग्न नारी की तरह दिखा सकते हैं,
जिस भूमि को माता मानकर पूजा की जाती है उसे अपनी पत्नी बनाकर रखने की बात की जा सकती है,
जिस देश को एकजुट व स्वतंत्र करने के लिए असंख्य क्रांतिकारियों ने अपने प्राणों का बलिदान दिया हो उसे टुकड़ों में बांटने की बात कर सकते हो,
देश में निर्दोष लोगों को हत्या करने वालों के समर्थन में नारे लगा सकते हो,
वर्षों से जिन संस्थाओं का सम्मान होता रहा अब सत्ता के लिए उन सभी सस्थाओं का अपमान कर सकते हो,
संसद, राष्ट्रपति हो या न्यायाधीश सभी को अनैतिक शब्द कह सकते हो,
भारत के ज्ञान और इतिहास को बचाने में अपनी कई पढियाँ देने वाले ब्राह्मणों और क्षत्रियों को अपमानित कर सकते हैं,
किसी धर्म या मान्यता का अपमान कर सकते हैं,
किसी धर्म के देवी देवताओं को अश्लील नामों से संबोधित कर उनका अपमान कर सकते हैं |
अर्थात् ऐसा कोई बात नहीं जो आप नहीं कर सकते इस नियम के अंतर्गत, संविधान निर्माताओं ने संविधान में इस नियम जोड़ते समय यह सोच रखी थी की कभी किसी व्यक्ति की आवाज न दबाई जा सके, उसे अपने अधिकारों के लिए अपनी बाटतें कहने की स्वतंत्रता मिल सके जिससे देश और लोकतंत्र मजबूत रहे | किन्तु अब इस स्वतंत्रता का लाभ जिन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए लिया जा रहा है उससे लोकतंत्र मजबूत नहीं कमजोर हो रहा है, किसी वर्ग को ठेस पंहुचाने का यह एक सरल और सुरक्षित मार्ग बन गया है | भारत का मिडिया जगत और बॉलीवुड जगत इस स्वतंत्रता का सबसे अधिक दुरुपयोग करता है |
एक तरफ बॉलीवुड है जिसका प्रारंभ लोगों का मनोरंजन और कला को बढ़ावा देने के लिए हुआ था, किन्तु अब यह एक धन अर्जित करने का एक साधन बन गया है, जिसमें कला से अधिक महत्व रूप, धन तथा अश्लीलता का हो चूका है, यदि आप रूपवान हैं अथवा धनवान है तो भले ही आपमें कला हो या न हो आप इस क्षेत्र में रह सकते हैं, यही कारण है इस मनोरंजन जगत में कुछ एक परिवारों का ही एकाधिकार हो गया है , एक के बाद पीढ़ी इस पर अपना एकाधिकार बनाये हुए है |
अब यदि मिडिया की बात करें तो इन्होने तो अपना अस्तित्व ही बेच दिया है | जिस मिडिया का जन्म विश्व, देश तथा समाज में घाट रही घटनाओं को अन्य लोगों तक तटस्तय होकर यथाचित्रण पंहुचाना होता है वो अपने अधिकारों व मंच का उपयोग किसी विशेष विचारधारा को समाज में विस्तृत करने, अपने दृष्टिकोणों से विचारों को प्रभावित करने अथवा बाजार में बिक रहे उत्पादों का प्रचार करने में कर रहा है, यही कारण है की अब मिडिया की विश्वसनीयता पहले से कम हो गई है | यदि आज मिडिया की दिनचर्या देखी तथा उसका विश्लेषण करें तो सुबह से रात्रि तक अधिकांश समय कुछ राजनेताओं के पीछे भागना उसके बाद कुछ अन्य प्रसिद्ध व्यक्तियों व मनोरंजन करने वाले सितारों को दिखाना उसके बाद समय मिले तो विश्व अथवा देश में कुछ ज्वलंत बिन्दुओं पर वाद विवाद करना इसके पश्चात् समय मिले तो देश के किसी गंभीर बिंदु को दिखाना इसके साथ साथ उत्पाद बेचने का कार्य तो दिनभर साथ साथ चलता ही रहता है |
मतलब देखा जाये तो राजनेताओं, मिडिया, उद्द्योगपतियों तथा कुछ तथाकथित बुद्धिजीवियों ने देश व् समाज को एक ऐसे भ्रम व मायाजाल में उलझा रखा है की हमें कुछ नहीं दिख रहा है | आधुनिकता की दौड़ में देश समाज को दौड़ा कर कहाँ ले जाना चाहते है इसका कोई लक्ष्य नहीं | जिन्हें देश चलने और उसका मार्गदर्शन करने का अधिकार व उत्तरदायित्व दिया गया है वास्तव में वाही हमारा उपयोग व उपभोग कर रहे हैं | इसके बाद भी हर वर्ष लोकतंत्र का पर्व हम ख़ुशी ख़ुशी माना रहे हैं |
तो आप सब ऐसे ही अभिव्यक्ति की आजादी का पर्व मानते रहें हैं और अपने ही देश, समाज, धर्म, संस्कृति को मिटाते रहिये |
धन्यवाद
वन्देमातरम
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