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भीमा-कोरेगांव समारोह में हिंसा

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चलो भीमा-कोरेगांव समारोह के इतिहास और वहां हुई हिंसा के बारे में जानें,
लगभग 200 साल पहले मराठा साम्राज्य की कमान पेशवा बाजीराव द्वितीय के हाथों में थी | ब्रिटिश शासन से लड़ रही मराठा शासन ने अपने सेना के साथ पुणे में आक्रमण करने की योजना बनाई पर रास्ते में उन्हें ब्रिटिश सेना की एक दल से लड़ना पड़ा, पेशवा ने पहले 2 हजार सैनिक भेजे पर 12 घंटे के युद्ध के बाद में बड़ी ब्रिटिश आर्मी आ गई और मराठा सैन्य दल पीछे हटना पड़ा |
चुकीं भारत के देशभक्त लोग उस समय अंग्रेजी सेना में शामिल नहीं होते थे इसलिये अंग्रेज उस समय "फुट डालो राज करो" की निति के तहत समाज के गरीब और पिछड़े लोगों को लालच देकर या जातिय अन्याय के नाम पर अपनी सेना में शामिल करते थे, इसी के तहत उनकी सेना में एक बड़ा दल महार जाति महार रेजिमेंट के लोगों का था जिसे अंग्रेजों ने ही दलित के रूप में वर्गीकृत किया था ताकि समाज में आपसी द्वेष पैदा किया जा सके | ब्रिटिश सेना कि पेशवा की सेना पर मिली इस जीत को उस वर्ग ने दलितों शोषितों की ब्राह्मणों-सवर्णों पर जीत समझकर इसे अपना सम्मान जोड़ दिया और इसी का वे आजतक जश्न मानते हैं |
ये जीत उन्हें 1 जनवरी 1818 को भीमा कोरेगांव की भूमि पर मिली थी, जिसके उपलक्ष्य में आज भी दलित समुदाय वहां इकठ्ठा होकर उस जीत को दलितों के सवर्णों पर जीत के जश्न के रूप में मानते हैं |
शायद उन्हें ये नहीं समझ आया की भारतीयों को आपस में ही लड़ाकर अंग्रेज एक के बाद एक राज्य जीते थे और पुरे भारत पर शासन किया था | वर्ना छोटी सी ब्रिटिश सेना लेकर अंग्रेज इतने बड़े शक्तिशाली भारत और उसके शक्तिशाली मराठा, राजपूत, सिक्ख, मुग़ल, बुन्देलखंड राज्यों और उनकी सेनाओं को हराकर भारत पर शासन नहीं कर सकते थे |
यहीं काम अब भारत की राजनैतिक दल कर रहे हैं जातिगत भेदभाव को प्रेम, शिक्षा और जनजागरण से मिटने के बजे वो इसे और भड़काकर फिर दलितों, आदिवासियों और मुस्लिमों के स्वघोषित नेता बन जाते हैं और फिर सत्ता पा लेते हैं, उनके इस कार्यों से वो सत्ता तक तो पंहुच जाते हैं पर समाज टूट जाता है |
कोंग्रेस, बसपा और कम्युनिस्ट पार्टी जैसी तथाकथित दलितों के लिए सोचने वाली पार्टियों ने दलित, मुस्लिम और आदिवासियों वर्ग का इसी तरह उपयोग किया है 60 सालों तक शासन में रहकर भी आज तक इनकी स्थिति नहीं सुधारी तो इसका दोष आखिर किसका है ? आरक्षण और अन्य सुविधाओं के नाम पर केवल इन्हें ठगा गया और इसका दोष वो आज की सरकार पर डाल रहे हैं |
1 जनवरी को महाराष्ट्र में हुई हिंसा में जो लोग भाजपा, RSS को दोष दे रहे हैं वो पहले ये बताएं की वो आखिर 200 साल पहले अंग्रेजों की मराठों पर जीत का जश्न क्यों मना रहे थे और अगर मना भी रहे थे तो वहां JNU के वो लोग जिन्होंने "भारत तेरे टुकड़े होंगे", "अफजल हम शर्मिंदा है तेरे कातिल जिन्दा हैं " के नारे लगाये थे जो न तो दलित थे और न ही उनका सम्बन्ध उस एतिहासिक युद्ध से था वो वहां क्या कर रहे थे ?
वहां समाज के बाकि वर्गों और हिन्दू धर्म को अपमानित क्यों किया जा रहा था, क्या यही दलित उत्थान है, दलित चेतना है ? क्या भारत की राजनैतिक पार्टियाँ इतना गिर चुकी हैं की सत्ता पाने के लिए समाज में जातिगत और धार्मिक द्वेष की आग में छोकने से भी नहीं चुक रही है ?
यदि आज भी हम भारतीय एकजुट न होकर अपने आपसी जाति, वर्ग और धर्म की लड़ाइयों में उलझे रहे तो भारत में चीन, पाकिस्तान और विदेशी पैसों पर पलने वाले आस्तीन के सांप, देशद्रोही भारत को तोड़ने और बर्बाद करने के अपने विदेशी उद्देश्यों में सफल हो जायेंगे |
वन्दे मातरम

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